Alankar in Hindi Alankar Ki Paribhasha, Bhed, Udaharan

Alankar in Hindi Alankar Ki Paribhasha, Bhed, Udaharan & Types in Hindi Grammar

Alankar in Hindi

आज की पोस्ट में हम अलंकार सम्पूर्ण परिचय (Alankar in Hindi)  पढेंगे ,इसके अंतर्गत हम अलंकार की परिभाषा (Alankar ki Paribhasha) , अलंकार के भेद (Alankar ke Prakar) , अलंकार के उदाहरण (Alankar ke Udaharan) अच्छे से जानेंगे । 

अलंकार की परिभाषा – Alankar in Hindi

काव्यों की सुंदरता बढ़ाने वाले यंत्रों को ही अलंकार कहते हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपनी सुंदरता बढ़ाने के लिए विभिन्न आभूषणों का प्रयोग करते हैं उसी तरह काव्यों की सुंदरता बढ़ाने के लिए अलंकारों का उपयोग किया जाता है।

अलंकार के भेद – Alankar in Hindi

मुख्य रूप से अलंकार के दो भेद होते हैं-

  1. शब्दालंकार
  2. अर्थालंकार

शब्दालंकार –

शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – शब्द + अलंकार। शब्द के दो रूप होते हैं – ध्वनी और अर्थ। ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टी होती है। जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और उस शब्द की जगह पर कोई और पर्यायवाची शब्द के रख देने से उस शब्द का अस्तित्व न रहे उसे शब्दालंकार कहते हैं।

नोट : जिस अलंकार में शब्दों को प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी शब्द को रखने से वो चमत्कार समाप्त हो जाये वहाँ शब्दालंकार होता है।

Alankar in Hindi

शब्दालंकार के कुल तीन भेद होते हैं-

  1. अनुप्रास अलंकार – (Alankar in Hindi)
  2. यमक अलंकार – (Alankar in Hindi)
  3. श्लेष अलंकार – (Alankar in Hindi)

अनुप्रास अलंकार –

अनुप्रास अलंकार- जहां पर भी एक से ज्यादा वर्ण बार-बार आ जाते हैं वहां अनुप्रास अलंकार होता है।

जैसे- चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही है जल थल में।

प्रस्तुत उदाहरण में शुरू में  और अंत में  बार-बार आवृत्ति के रूप में प्रयोग हुआ है इसलिए यहां अनुप्रास अलंकार है।

अनुप्रास अलंकार के दो प्रमुख रूप है-

  1. आदि अनुप्रास – (Alankar in Hindi)
  2. अन्त्यानुप्रास – (Alankar in Hindi)

आदि अनुप्रास

आदि अनुप्रास– जब भी अनुप्रास अलंकार किसी भी शब्द के शुरू में लगता है तब उसे आदि अनुप्रास कहते हैं।

जैसे- काम कितना ही कठिन हो लेकिन उकताते नहीं।

प्रस्तुत उदाहरण में त और क की आवृत्ति शुरू में हुई है।

अन्त्यानुप्रास

अन्त्यानुप्रास – जब भी अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किसी शब्द के अंत में होता है वहां अन्त्यानुप्रास होता है। ध्यान रखे की अन्त्यानुप्रास

तुकांत शब्द कहलाते हैं।

जैसे- खान पान सम्मान राग रंग मनहिं ना भावै।

प्रस्तुत उदाहरण में स और न शब्द की आवृत्ति अंत में हुई है।

यमक अलंकार

यमक अलंकार(Alankar in Hindi)

जहां एक शब्द का प्रयोग एक बार से कई अधिक बार होता हैं और हर बार उसका अर्थ अलग अलग होता है।वहां यमक अलंकार होता है।

जैसे- काली घटा का घमंड घटा

नभ मंडल तारक वृंद खिले

प्रस्तुत उदहारण में “घटा” शब्द दो बार आया है लेकिन दोनों बार उसका अर्थ अलग-अलग है –

पहली बार जो घटा शब्द है उसका अर्थ है बादल

दूसरी बार घटा शब्द का अर्थ है कम होना , अर्थात यहाँ पर यमक अलंकर है |

श्लेष अलंकार – (Alankar in Hindi)

श्लेष अलंकार– जहां एक ही शब्द एक ही बार प्रयोग में आता है लेकिन बहुत सारे अर्थ बताता है वहां श्लेष अलंकार होता है।

जैसे- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून, पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून।

प्रस्तुत उदाहरण में पानी शब्द का दो अर्थ है। जैसे- पानी का प्रयोग मोती के लिए, मनुष्य के सम्मान के लिए है।

अर्थालंकार

जब किसी कविता में विशेषता उसके शब्दों में न होकर, उसके अर्थ में छुपी हुई होती है, वहां अर्थालंकार प्रयुक्त होता है। अर्थालंकार के प्रमुख रूप से निम्नलिखित नौ भेद हैं:-

  1. उपमा अलंकार
  2. रूपक अलंकार
  3. उत्प्रेक्षा अलंकार
  4. भ्रांतिमान अलंकार
  5. संदेह अलंकार
  6. अन्योक्ति अलंकार
  7. विभावना अलंकार
  8. मानवीकरण अलंकार
  9. अतिशयोक्ति अलंकार

1) उपमा अलंकार

समान धर्म के आधार पर जहाँ एक वस्तु की समानता या तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है। उपमा के चार अंग हैं

  1. उपमेय वर्णनीय वस्तु जिसकी उपमा या समानता दी जाती है, उसे ‘उपमेय’ कहते हैं; जैसे-उसका मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है। वाक्य में ‘मुख’ की चन्द्रमा से समानता बताई गई है, अत: मुख उपमेय है।
  2. उपमान जिससे उपमेय की समानता या तुलना की जाती है उसे उपमान कहते हैं; जैसे-उपमेय (मुख) की समानता चन्द्रमा से की गई है, अतः चन्द्रमा उपमान है।
  3. साधारण धर्म जिस गुण के लिए उपमा दी जाती है, उसे साधारण धर्म कहते हैं। उक्त उदाहरण में सुन्दरता के लिए उपमा दी गई है, अत: सुन्दरता साधारण धर्म है।
  4. वाचक शब्द जिस शब्द के द्वारा उपमा दी जाती है, उसे वाचक शब्द कहते हैं। उपर्युक्त उदाहरण में समान शब्द वाचक है। इसके अलावा ‘सी’, ‘सम’, ‘सरिस’ सदृश शब्द उपमा के वाचक होते हैं। उपमा के तीन भेद हैं–पूर्णोपमा, लुप्तोपमा और मालोपमा।

(क) पूर्णोपमा जहाँ उपमा के चारों अंग विद्यमान हों वहाँ पूर्णोपमा अलंकार होता है;

जैसे-
हरिपद कोमल कमल से”

(ख) लुप्तोपमा जहाँ उपमा के एक या अनेक अंगों का अभाव हो वहाँ लुप्तोपमा अलंकार होता है;

जैसे-
“पड़ी थी बिजली-सी विकराल।
लपेटे थे घन जैसे बाल”।

(ग) मालोपमा जहाँ किसी कथन में एक ही उपमेय के अनेक उपमान होते हैं वहाँ मालोपमा अलंकार होता है।

जैसे-
“चन्द्रमा-सा कान्तिमय, मृदु कमल-सा कोमल महा
कुसुम-सा हँसता हुआ, प्राणेश्वरी का मुख रहा।।”

2) रूपक अलंकार

जब किसी काव्य में गुण में अत्यंत समानता के कारण उपमेय में उपमान का भेद आरोपित कर दिया जाए, वहां रूपक अलंकार प्रयुक्त होता है। यहाँ पर वाचक शब्द का प्रयोग नही होता है।

रूपक अलंकार के कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:-

क) “चरण कमल बन्दौं हरि राइ।”

[यहाँ पर भगवान विष्णु के चरणों को कमल माना गया है। यहाँ पर तुलना न करते हुए, हरि-चरणों को कमल का रूप मान लिया गया है। यहाँ पर वाचक शब्द अनुपस्थित है।]

ख)”बीती विभावरी जाग रही,
अम्बर पनघट में डुबो रही,
तारा घट उषा नागरी।”

[यहाँ पर अम्बर को पनघट तथा उषा को नागरी का रूप मान लिया गया है। कहने का आशय यह है कि ये आसमान एक बहुत विशाल पानी का घाट है, जिस पर उषा(सुबह) रुपी स्त्री तारों की भांति चमकता पात्र(घड़ा) डुबो रही है, जिसमे वह पानी भरकर ले जाने आई है। यहाँ पर वाचक शब्द का प्रयोग नही किया गया है।]

ग) “मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेहों।”

[उपर्युक्त पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण बाल रूप में लीला दिखाते हुए चंद्र रुपी खिलौने से खेलने की हठ कर रहे हैं। यहाँ पर चाँद को खिलौने का रूप दे दिया गया है। तथा यहाँ पर वाचक शब्द भी अनुपस्थित है।]

3) उत्प्रेक्षा अलंकार

जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाए वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें जनु, मनु, मानो, जानो, इव, जैसे वाचक शब्दों का प्रयोग होता है। उत्प्रेक्षा के तीन भेद हैं-वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा।

(i) वस्तूत्प्रेक्षा जहाँ एक वस्तु में दूसरी वस्तु की सम्भावना की जाए वहाँ वस्तूत्प्रेक्षा होती है;

जैसे-
“उसका मुख मानो चन्द्रमा है।”

(ii) हेतृत्प्रेक्षा जब किसी कथन में अवास्तविक कारण को कारण मान लिया जाए तो हेतूत्प्रेक्षा होती है;

जैसे-
“पिउ सो कहेव सन्देसड़ा, हे भौंरा हे काग।
सो धनि विरही जरिमुई, तेहिक धुवाँ हम लाग”।।

यहाँ कौआ और भ्रमर के काले होने का वास्तविक कारण विरहिणी के विरहाग्नि में जल कर मरने का धुवाँ नहीं हो सकता है फिर भी उसे कारण माना गया है अत: हेतूत्प्रेक्षा अलंकार है।

(iii) फलोत्प्रेक्षा जहाँ अवास्तविक फल को वास्तविक फल मान लिया जाए, वहाँ फलोत्प्रेक्षा होती है;

4) भ्रांतिमान अलंकार

यह अलंकार वहां पर प्रयुक्त होता है जब किसी गुण, अथवा रूप की समानता की वजह से उपमेय में उपमान की निश्चयात्मकता प्रतीत होती है, तथा बाद में वही, क्रियात्मक परिस्थिति में परिवर्तित हो जाती है।अर्थात जब उपमेय में उपमान होने का भ्रम हो जाये।

उदाहरण: “पायें महावर देन को, नाइन बैठी आय,
फिरि-फिरि जानि महावरी, एड़ी भीडत आय”।

5) सन्देह अलंकार

जहाँ अति सादृश्य के कारण उपमेय और उपमान में अनिश्चय की स्थिति बनी रहे अर्थात् जब उपमेय में अन्य किसी वस्तु का संशय उत्पन्न हो जाए, तो वहाँ सन्देह अलंकार होता है;

जैसे-
“सारी बीच नारी है या नारी बीच सारी है,
कि सारी की नारी है कि नारी की ही सारी।”

यहाँ उपमेय में उपमान का संशयात्मक ज्ञान है अतः यहाँ सन्देह अलंकार है। 6. दृष्टान्त जहाँ किसी बात को स्पष्ट करने के लिए सादृश्यमूलक दृष्टान्त प्रस्तुत किया जाता है, वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है;

जैसे-
“मन मलीन तन सुन्दर कैसे।
विषरस भरा कनक घट जैसे।।”

यहाँ उपमेय वाक्य और उपमान वाक्य में बिम्ब-प्रतिबिम्ब का भाव है अतः यहाँ दृष्टान्त अलंकार है।

6) अन्योक्ति अलंकार

यह अलंकार तब प्रयुक्त किया जाता है जब किसी काव्य में प्रस्तुत किसी परिस्थिति अथवा वस्तु का वर्णन किसी और अनुपस्थित वस्तु अथवा परिस्थिति के माध्यम से किया जाये।

उदाहरण: “फूलों के आस-पास रहते हैं, 
फिर भी कांटें उदास रहते हैं।”

7) अतिशयोक्ति अलंकार

जहाँ किसी विषयवस्तु का उक्ति चमत्कार द्वारा लोकमर्यादा के विरुद्ध बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है;

जैसे-
हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
सारी लंका जरि गई, गए निशाचर भाग।”

यहाँ हनुमान की पूंछ में आग लगने के पहले ही सारी लंका का जलना और राक्षसों के भागने का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन होने से अतिशयोक्ति अलंकार है।

8) विभावना अलंकार

विभावना अलंकार का प्रयोग तब किया जाता है, जब किसी निश्चित वजह अथवा कारण की अनुपस्थिति होने के बावजूद, उस कार्य के उत्पन्न होने का विवरण देकर विश्लेषण किया जाता है। अर्थात कारण की उपस्थिति में भी कार्य की पूर्ति हो जाये।

उदाहरण: बिनु पगु चलै, सुनै बिनु काना,
कर बिनु कर्म, करै विधि नाना,
आनन रहित, सकल रसु भोगी,
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।”

9) मानवीकरण अलंकार

मानवीकरण अलंकार का प्रयोग तब किया जाता है, जब किसी निर्जीव अथवा सजीव वस्तु की तुलना किसी व्यक्ति, पशु अथवा जीव की गतिविधियों तथा क्रियाशीलता से की जाती है, अर्थात जब कोई निर्जीव वस्तु को मानव रूप देकर उससे मानव द्वारा की जाने वाली गतिविधियों का कर्ता मान लिया जाता है।

उदाहरण:”बीती विभावरी जाग रही,
अम्बर पनघट में डुबो रही,तारा घट उषा नागरी।”

निष्कर्ष

Alankar in Hindi लेख के माध्यम से हमने जाना कि अलंकार क्या होता है उसकी परिभाषा क्या है उसकी पहचान क्या है तथा उसके सभी भेदों की जानकारी भी हमने प्राप्त करी।

शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों के भेद हमने देखे तथा सब की परिभाषा और उदाहरण को भी जाना।

Alankar in Hindi वैसे तो हमने यहां पर सभी जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास किया है परंतु अगर तब भी कुछ शेष रह गया हो तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं, अगर आपको अलंकार विषय में कुछ समझने में कठिनाई हुई हो तो वह भी आप पूछ सकते हैं हम आपके सवालों का जवाब अवश्य देंगे।

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