
Transformer In Hindi | Transformer Kya Hai | Types of transformers | और इसका कार्य सिद्धांत
What is Transformer in hindi
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ट्रांसफार्मर एक ऐसा स्थिर विद्युत यन्त्र है जो ऊर्जा की हानि किये बिना ही प्रत्यावर्ती वोल्टेज को कम या ज्यादा कर सकता है जब से विद्युत की उत्पत्ति हुई है, तब से लोगों ने इसका पूरा इस्तमाल करना प्रारंम्भ कर दिया है. और करें भी क्यूँ न Electricity के फायेदे जो इतने सारे हैं. विद्युत निकलने से लेकर उसे फ़ैलाने की प्रक्रिया में Transformer की एक अलग ही भूमिका होती है. शायद आप में बहत लोग ये जानते हों की ट्रांसफार्मर क्या है और ये किस सिद्धांत पर कार्य करता है ? ट्रांसफार्मर का अविष्कार Michael faraday और जोसेफ हेनरी ने किया इसे 1831 में दुनिया को दिखाया हिंदी में ट्रांसफार्मर को परिणामित्र कहते है
हम पाने आस पड़ोस में बहुत से प्रकार के Transformer देखते हैं. कुछ के आकार २ छोटे होते हैं तब कुछ के आकार बहुत ही बड़े होते हैं. इन्हें इनकी जरुरत के हिसाब से इस्तमाल किया जाता है. हम में से ऐसे बहुत से लोग है जिन्होंने की ट्रांसफार्मर देखा तो है लेकिन उन्हें ये नहीं पता होता है की ये किस कार्य में लगते हैं. आजकल विद्युत स्थापना में बड़े पैमाने पर ट्रांसफार्मर ( Transformer ) का उपयोग किया जाता है, इसलिए सबको इसके बारे में जानना जरूरी है। इस ब्लॉग में, हम ट्रांसफॉर्मर ( Transformer ) की एक विस्तृत जानकारी देने प्रयास करेंगे।
ट्रांसफार्मर क्या है (What is Transformer in Hindi)
Transformer एक ऐसा device होता है जो की electrical energy को transfer करता हैं एक circuit से दुसरे में वो भी एक magnetic field के माध्यम से और बिना कोई बदलाव के frequency में. इसमें जो electrical circuit Source की electrical power को receive करता है उसे primary winding कहते हैं और दूसरी circuit जो electric energy deliver करती है load को उसे secondary winding कहा जाता है. ट्रांसफार्मर एक उपकरण है जो प्रत्यावर्ती धारा (alternating current) पर काम करता है इसका मतलब है कि ट्रांसफार्मर विद्युत उपकरण है जो एक वोल्टेज (Voltage ) पर ऊर्जा को स्वीकार करता है और दूसरे वोल्टेज (Voltage) स्तर पर वितरित करता है। यह इनपुट वोल्टेज (input voltage) के संबंध में एक अलग स्तर पर आउटपुट वोल्टेज (output voltage ) प्रदान करता है। यह एक स्टैटिक डिवाइस (static device ) है जिसमें कोई चलने वाला हिस्सा नहीं होता है।
ट्रांसफार्मर की परिभाषा Definition Of Transformer In Hindi
यदि हम Transformer की परिभाषा की ऊपर गौर करें तब पाएंगे की, ये एक ऐसी device होती है जो की या तो Voltage को step-up करती है या फिर step-down, वो भी current के corresponding decrease और increase के हिसाब से. Transformer असल में एक electromagnetic energy conversion device होती है, जिसमें की जो energy receive किया जाता है primary winding में उसे पहले convert किया जाता है magnetic energy में और फिर उसे दुबारा reconvert किया जाता है electric energy में secondary winding पर.
हमे ट्रांसफार्मर (Transformer) की आवश्यकता क्यों होती है?
सिंगल फेज सप्लाय सिस्टम से ज्यादा फायदे 3 Phase सप्लाई सिस्टम में होते हैं। इसलिए आजकल 3 Phase Supply System का जनरेशन, ट्रांसमीशन और डिस्ट्रीब्यूशन किया जाता है। इस सप्लाय सिस्टम को अधिक कार्यक्षम बनाने के लिए भारतीय मानक संस्था ने हर एक पड़ाव के लिए एक मानक वोल्टेज निश्चित किया है।
- जनरेशन वोल्टेज (Generation Voltage) = 11 KV.
- ट्रांसमीशन वोल्टेज ( Transmission Voltage) = 440 KV, 220 KV
- डिस्ट्रीब्यूशन वोल्टेज (Distribution Voltage) = 132KV, 66KV, 33KV, 11KV
- Utilization वोल्टेज (Utilization Voltage)= 440 V या 230 V
इस वोल्टेज मर्यादा को अगर ध्यान से समझे तो, 11000 वोल्ट जो जनरेट किया जाता है, और प्रत्यक्ष रूप से ग्राहकों तक पहुंचने वाला वोल्टेज जो ग्राहक उपयोग में लाते है। वह होता है 3 Phase 440 वोल्ट और सिंगल फेज 230 वोल्ट.
इन सबसे हमे यह समझ आता है कि निर्माण किये गए 11000 वोल्ट को ही 440 वोल्ट और 230 वोल्ट तक कम किया जाता है।
इस प्रकार AC supply System में ज्यादा वोल्टेज को कम करते समय अथवा कम वोल्टेज को ज्यादा करते समय उसके सप्लाय फ्रीक्वेंसी (Frequency) और पावर में बदलाव नही होना चाहिए। इसके लिए जो यंत्र आवश्यक होता है वह होता है ट्रांसफार्मर (Transformer)

ट्रांसफार्मर कैसे काम करता है How the Transformer works
ट्रांसफार्मर में कॉइल (coil) होते हैं जो संख्या में दो (प्राथमिक – Primary और द्वितीयक – Secondary ) की तुलना में दो या अधिक होते हैं। ये कॉइल (coil) सीधे एक-दूसरे के साथ जुड़े नहीं होते हैं, यानी ये चुंबकीय रूप (magnetically) एक-दूसरे के साथ से जुड़े होते हैं। प्राथमिक कुंडली Primary coil शक्ति के स्रोत – Electrical Source से जुड़ी होती है और द्वितीयक कुंडल Secondary coil शक्ति (भार) Electrical Load के उपयोग से जुड़ा होता है। जिस सिद्धांत पर ट्रांसफार्मर काम करता है वह फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण Faraday’s law of electromagnetic induction का नियम है।
फैराडे का नियम Faraday’s law
जिसका अर्थ है कि जब एक कंडक्टर conductor को एक अलग चुंबकीय क्षेत्र इलेक्ट्रोमोटिव बल magnetic field electromotive force (EMF) में रखा जाता है, तो उसमें उत्पादन किया जाता है। यहाँ कंडक्टर सेकेंडरी कॉइल Secondary coil है और अलग-अलग मैग्नेटिक फील्ड varying magnetic field है जो प्राइमरी कॉइल Primary coil से होकर बहती है।
ट्रांसफार्मर के पार्ट्स क्या क्या हैं?
इस के मुख्य रूप से तीन पार्ट होते हैं
- प्राइमरी वाइंडिंग
- मैग्नेटिक कोर
- सेकेंडरी वाइंडिंग
Primary Winding
ये Primary Winding ही है जो की magnetic flux उत्पन्न करती है जब उसे किसी electric source के साथ connect किया जाता है तब.
Magnetic Core
इस primary winding में उत्पन्न हुई magnetic flux को pass किया जाता है low reluctance path से जो की linked होती है secondary winding से और ये एक closed magnetic circuit create करती है.
Secondary Winding
Primary Winding में जो flux उत्पन्न हुई होती है उसे core के माध्यम से pass किया जाता है जो की secondary winding के साथ link हुआ होता है. ये winding भी वही समान core में लिपटी हुई होती है और ये जरुरत की output पैदा भी करती है Transformer की.
Note ये समझना जरुरी है की transformers electrical power generate नहीं करते हैं; ये transfer करते हैं electrical power को एक AC circuit से दुसरे में वो भी magnetic coupling के इस्तमाल से.
Transformer का core इस्तमाल होता है एक controlled path प्रदान करने के लिए magnetic flux को जो की generate होता है transformer में उस current के द्वारा जो की windings में flow हो रही होती है, जिन्हें की coils भी कहा जाता है.

ट्रांसफार्मर का महत्व
आप चाहे किसी भी शहर या गांव चले जाएं अगर वहां पर बिजली होगी तो वहां पर ट्रांसफॉर्मर जरूर होगा क्योंकि इसके बिना करंट लोगों के घरों तक नहीं पहुंचा जा सकता है. यह जनसंख्या के अनुसार हर जगह पर लगाया जाता है.
इसकी क्षमता के अनुसार उतने ही घरों को बिजली दी जाती है जितने को यह संभाल सकें. ट्रांसफार्मर जितनी ज्यादा कैपेसिटी का होगा उतने अधिक घरों को एक बिजली की सप्लाई दे सकता है.
लोड अधिक हो जाने पर वोल्टेज कम हो जाता है और लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
हमारे जीवन में इसका काफी महत्व है क्योंकि जब भी हमारे आपके क्षेत्र का ट्रांसफार्मर होता है अगर वह जल जाता है तो हमें बिजली के बिना अंधेरे में रहना पड़ता है और यहां तक कि इससे चलने वाले जो मशीनें होती है वह भी ठप पड़ जाती है.
- आमतौर पर जो इलेक्ट्रिकल पावर होता है 11 किलो वोल्ट में पैदा होता है.
- आर्थिक कारणों से Ac पावर यानी बिजली को लंबी दूरी तक भेजने के लिए बहुत ही हाई वोल्टेज 220 kV या 440 kV में बदला जाता है.
- इसीलिए पावर स्टेशन में पैदा किए हुए बिजली को हाई वोल्टेज में बदलने के लिए स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर का इस्तेमाल किया जाता है.
- सुरक्षा कारणों से वोल्टेज को सभी स्टेशनों में स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर की मदद से अलग–अलग वोल्टेज बदल दिया जाता है.
- जिससे कि उन्हें अलग अलग स्थानों पर भेज कर उपयोग में लाया जा सके इसके लिए स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर से वोल्टेज को 400/230V में बदला जाता है.
ट्रांसफार्मर (Transformer) की कार्यपद्धति | ट्रांसफार्मर (Transformer) कैसे काम करता है?
जब ट्रांसफार्मर (Transformer) की प्राइमरी वाइंडिंग (Winding) को AC Supply दिया जाता है। तब प्राइमरी वाइंडिंग (Winding) के चारो ओर बदलती चुंबकीय रेखाएं निर्माण होती हैं। चुम्बकीय रेखाएं बदलती होने के कारण स्थिर कंडक्टर से कट जाती हैं।
और प्रायमरी वाइंडिंग (Winding) में सेल्फ इंड्यूजड EMF निर्माण होता है। प्राइमरी वाइंडिंग (Winding) से AC Current का बहाव होता है, इस वजह से प्राइमरी वाइंडिंग (Winding) के चारो ओर बदलते फ्लक्स निर्माण होते हैं।
प्राइमरी फ्लक्स कोर (Core) के माध्यम से बहकर सेकेंडरी वाइंडिंग (Winding) तक पहुंचते हैं। फ्लक्स और सेकेंडरी वाइंडिंग (Winding) के टर्न्स के बीच कटिंग एक्शन होकर सेकेंडरी वाइंडिंग (Winding) में Mutual Induced EMF निर्माण होता है।
फेरेड के इलेक्ट्रो मैग्नेटिक इंडक्शन के दूसरे नियम के अनुसार निर्माण होने वाला induced EMF वाइंडिंग (Winding) के टर्न्स के सम अनुपात में होता है मतलब वाइंडिंग (Winding) में जितने टर्न्स ज्यादा होंगे उतनीही कटिंग एक्शन ज्यादा होकर स्टेटिक EMF निर्माण होता है।
जब सेकेंडरी वाइंडिंग (Winding) को लोड से जोड़ा जाता है, तब सेकेंडरी का सर्किट पूरा होकर वाइंडिंग (Winding) से करंट फ्लो होने लगता है। और इस तरह लोड को इलेक्ट्रिक पावर प्रदान की जाती है। इस प्रकार ट्रांसफार्मर (Transformer) काम करता है।
Step Up ट्रांसफार्मर क्या होते हैं?
ऐसा transformer जो की voltage को बढाता है primary से secondary windings के बीच में उसे एक step-up transformer कहा जाता है.
Step Down ट्रांसफार्मर क्या होते हैं?
वहीं एक ऐसा transformer जो की voltage को घटाता है primary से secondary windings के बीच में उसे step-down transformer कहा जाता है.
ट्रांसफार्मर को Static Device क्यूँ कहा जाता है?
Transformer में electric energy को एक circuit से दुसरे में transfer करने के लिए कोई भी moving part की आवश्यकता नहीं होती है. यही कारण है की इन्हें एक Static Device कहा जाता है.
Step Up Transformer और Step Down Transformer में क्या अंतर है?
अब चलिए Step-up और Step-down Transformer के बीच के कुछ महत्वपूर्ण अंतर के ऊपर गौर करते हैं जो की उनके application में नज़र आता है.
Sr No. | Step up Transformer | Step down Transformer |
1) | Step up transformer का output voltage ज्यादा होता है source voltage की तुलना में. | वहीँ Step down transformer में output voltage कम होता है source voltage की तुलना में. |
2) | इसमें Transformer की LV winding primary और HV winding secondary होती है. | वहीँ transformer की HV winding primary होती है और LV winding होती है secondary. |
3) | Step-up Transformer की secondary voltage ज्यादा होती है primary voltage की तुलना में. | वहीँ Step-down Transformer में secondary voltage कम होती है primary voltage की तुलना में. |
4) | Primary Winding की number of turns कम होती है secondary winding की तुलना में. | वहीँ इसमें number of turns primary winding की ज्यादा होती है secondary winding की तुलना में. |
5) | Transformer की Primary current ज्यादा होती है secondary current से. | वहीँ इसमें Secondary current ज्यादा होती है primary current से. |
6) | Step up transformer का इस्तमाल generally power transmission के लिए होता है. Generator Transformer जो की एक power plant में इस्तमाल होता है वो एक उदाहरण है Step-up Transformer की. | Step down Transformer का इस्तमाल power distribution के लिए होता है. Transformer जो की इस्तमाल होता है residential colony में वो एक बढ़िया उदाहरण है step-down transformer का. |
ट्रांसफार्मर के प्रकार क्या है?
Core और वाइंडिंग के पोजीशन के आधार पर प्रकार
1. Core type
कोर टाइप ट्रांसफॉर्मर ऐसे ट्रांसफॉर्मर होते हैं जिसमें प्राइमरी वाइंडिंग और सेकेंडरी वाइंडिंग को प्रत्येक limb के चारों ओर रखा जाता है.
कोर टाइप जो होता है उसमें और एक मैग्नेटिक सर्किट होता है जो एक इलेक्ट्रिक सीरीज सर्किट के इक्विवेलेंट होता है. इसमें लेमिनेशन लिंब E और L स्ट्रिप के रूप में होता है. इसमें ज्यादा कॉपर की जरूरत होती है.
इस वाइंडिंग को Concentric Winding और Cylindrical Winding के नाम से भी जाना जाता है. इसमें 2 limb होते हैं.
2. Shell type
Shell type ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग को सेंटर कोर में रखा जाता है Shell type कोर इलेक्ट्रिक पैनल सर्किट के इक्विवेलेंट होता है. इसमें लेमिनेशन L स्ट्रिप के रूप में होता है.
इसमें कम कॉपर की जरूरत होती है. इस वाइंडिंग को Sandwich और Disc Winding के नाम से भी जाना जाता है. इसमें 3 limb होते हैं.
वाइंडिंग के आधार पर प्रकार
1. Step up transformer
जब वोल्टेज आउटसाइड पर बढ़ाया जाता है तो ट्रांसफार्मर को स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर कहा जाता है इस में number of turns यानी कि coil पर लिपटे हुए कॉपर वायर की संख्या सेकेंडरी वाइंडिंग से ज्यादा होती है. क्यूंकि इस की सेकेंडरी साइड हाई वोल्टेज डिवेलप की जाती है.
भारत जैसे देशों में आम तौर पर 11Kv पर बिजली उत्पन्न होती है किफायती कारणों से लंबी दूरी पर बहुत अधिक वोल्टेज भेजने के लिए स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर का इस्तेमाल किया जाता है.
इसके लिए बनाए गए बिजली को सबसे पहले पावर स्टेशन में भेजा जाता है और फिर वहां पर स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर की मदद से वोल्टेज को हाई वोल्टेज (220v-440v) में बदला जाता है फिर उससे लंबी दूरी तक पहुंचाई जाती है.
2. Step down transformer
एक स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर आउटपुट वोल्टेज को कम करता है या दूसरे शब्दों में कहें तो यह high voltage low current पावर को एक low voltage high current पावर में बदल देता है.
विभिन्न क्षेत्रों में बिजली पहुंचाने के लिए सुरक्षा कारणों से वोल्टेज को 440v/230v में बदलना होता है और इसके लिए स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर का इस्तेमाल किया जाता है.
इस तरह सेकेंडरी वाइंडिंग में प्राइमरी वाइंडिंग की तुलना में no. of turns कम होता है जिसकी वजह से वोल्टेज को कम किया जा सकता है.
Service के आधार पर प्रकार
1. Power transformer
पावर ट्रांसफॉर्मर एक ऐसा ट्रांसफार्मर होता है जिसका उपयोग इलेक्ट्रिकल एनर्जी को इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के किसी भी हिस्से में ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है और यह जनरेटर और डिस्ट्रीब्यूशन और प्राइमरी सर्किट के बीच में होता है.
इसके भी कई प्रकार के होते हैं जैसे छोटे पावर ट्रांसफॉर्मर मध्यम आकार के और बड़े आकार के पावर ट्रांसफॉर्मर.
2. Distribution transformer
Distribution ट्रांसफॉर्मर एक ऐसा ट्रांसफार्मर होता है जिसका उपयोग इलेक्ट्रिकल एनर्जी को इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के किसी भी हिस्से में ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है और यह जनरेटर और डिस्ट्रीब्यूशन और प्राइमरी सर्किट के बीच में होता है.
इन ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम इंटरफ़ेस के लिए इस्तेमाल किया जाता है. एक सामान्य पावर ट्रांसफॉर्मर में लिक्विड इस्तेमाल किया जाता है और इसका जीवनकाल लगभग 30 साल का होता है.
पावर ट्रांसफार्मर भी कई प्रकार के होते हैं जैसे छोटे पावर ट्रांसफॉर्मर मध्यम आकार के और बड़े आकार के पावर ट्रांसफॉर्मर.
- छोटे पावर ट्रांसफार्मर की सीमा 500-7500kVA से हो सकती है.
- मध्यम पावर ट्रांसफार्मर की रेंज -100MVA से हो सकती है.
- बड़े पावर ट्रांसफार्मर की रेंज 100MVA और उससे अधिक हो सकती है.
3. Instrument transformer
इस का इस्तेमाल AC सिस्टम में इलेक्ट्रिकल क्वांटिटी मापने के लिए जैसे वोल्टेज, करंट, पावर, एनर्जी, पावर फैक्टर, फ्रिकवेंसी इत्यादि. पावर सिस्टम की सुरक्षा के लिए प्रोटेक्शन लेयर के रूप में इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किया जाता है.
इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर का बेसिक फंक्शन AC सिस्टम के वोल्टेज और करंट को स्टेप डाउन करना होता है. पावर सिस्टम के वोल्टेज और करंट लेवल काफी हाई होती है.
बहुत ज्यादा हाई वोल्टेज और करंट को मापने वाले इंस्ट्रूमेंट की डिजाइन कोस्ट काफी ज्यादा होती है. सामान्यता मेजरिंग इंस्ट्रूमेंट 5 एंपियर और 110 वोल्ट के करंट और वोल्टेज को मापने के लिए डिजाइन किए जाते हैं.
इस तरह से बहुत बड़ी इलेक्ट्रिकल क्वांटिटी स्कोर मापना आसान बनाया जाता है वह भी सिर्फ इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर की मदद. इस तरह के इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर आधुनिक पावर सिस्टम में काफी लोकप्रिय हैं.
4. Current transformer
यह इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर का ही एक प्रकार है.
इसका डिजाइन सेकेंडरी वाइंडिंग में अल्टरनेटिंग करंट को प्रोड्यूस करने के लिए डिजाइन किया गया है जो की प्राइमरी वाइंडिंग में मापे गए करंट के समानुपाती होता है.
ये हाई वोल्टेज करंट को बहुत ही कम मात्रा में बदल देते हैं और सुरक्षा के साथ AC ट्रांसमिशन लाइन में एक्चुअल इलेक्ट्रिकल करंट फ्लो प्रदान करते हैं. इसके लिए एक्सटेंडेड Ammeter का इस्तेमाल किया जाता है.
5. Potential transformer
यह एक वोल्टेज स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर है जो हाई वोल्टेज सर्किट के वोल्टेज को कम करता है जिससे कि कम वोल्टेज के जरिए मेज़रमेंट किया जा सके.
मॉनिटरिंग के अनुसार across या फिर पैरेलल लाइन में जुड़े हुए होते हैं. इस के ऑपरेशन और कंस्ट्रक्शन का मूल सिद्धांत स्टैंडर्ड पावर ट्रांसफॉर्मर के समान होता है.
6. Auto-transformer
ये ऐसे ट्रांसफार्मर है जिसमें सिर्फ एक वाइंडिंग होती है और जो लैमिनेटेड कोर पर होता है.
यह 2 वाइंडिंग ट्रांसफार्मर के जैसा ही होता है बस फर्क यह है कि प्राइमरी और सेकेंडरी के बीच में जो कनेक्शन होता है वह अलग होता है वाइंडिंग का एक भाग प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों के लिए कॉमन होता है.
लोड के कंडीशन में लोड करंट का एक पार्ट सप्लाई से लिया जाता है और जो बाकी बचा हुआ भाग होता है वह इस के एक्शन से लिया जाता है. यह वोल्टेज रेगुलेटर की तरह काम करता है.

ट्रांसफार्मर की रेटिंग Rating of the Transformer
ट्रांसफॉमर की राइटिंग ( Rating ) केवीए KVA ( किलो वोल्ट एम्पर्स Kilo Volt Amper ) में मापी जाती है। ये विद्युत ऊर्जा को बदलने के क्षमता होती है।
यह करंट ले जाने की क्षमता और वोल्टेज रेटिंग का गुणा है।
किसी विशेष प्लांट Plant / यूनिट Unit के लिए ट्रांसफार्मर की रेटिंग Rating की गणना करने के लिए, कनेक्टेड लोड Connected Load को उद्योग के विविधता कारक diversity factor से गुणा किया जाना है। विविधता कारक diversity factor को विद्युत ऊर्जा की अधिकतम मांग के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो एक संयंत्र / इकाई में विभिन्न उपकरणों द्वारा विद्युत ऊर्जा की व्यक्तिगत मांगों का योग हो सकता है। विविधता कारक उद्योग के प्रकार के साथ अलग-अलग होगा और यह कुछ प्रमुख कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि लोड के प्रकार, लोड के चलने के तरीके, स्टैंड-बाय लोड, भविष्य के विस्तार के लिए प्रावधान आदि। बहुत स्पष्ट है कि विविधता कारक न तो एकता से अधिक हो सकती है।
ट्रांसफार्मर की सेफ्टी टिप्स – Safety of transformer in Hindi
- ट्रांसफार्मर बार बार चेक करें ताकि ब्रेकडाउन कम से कम हो
- इंस्टॉलेशन के पहले ट्रांसफार्मर को चेक करें। और यह ध्यान दें कि कहीं से जलने की बदबू नहीं आ रही या कोई पावर केबल कनेक्टर खराब तो नहीं है
- ट्रांसफार्मर में काम करते हो पावर ऑफ रखें।
- पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट का इस्तेमाल जरूर करें.
- हमेशा ट्रांसफार्मर और इसके कंप्लेंट को सूखा रखें.
आज आपने क्या सीखा
आशा करते हैं दोस्तो आपको What is Transformer in Hindi / ट्रांसफॉर्मर क्या है हिंदी में आर्टिकल अच्छा लगा होगा यदि आपके कोई सवाल या सुझाव हैं तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं।
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