Relay क्या है | Details In Hindi और ये कितने प्रकार का होता है?

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Relay क्या है | Details In Hindi और ये कितने प्रकार का होता है? भाग | वोर्किंग 

Relay Kya Hai

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आप इलेक्ट्रिकल रिपेयरिंग के काम में इंटरेस्टेड होंगे तो आपने बहुत सारे सर्किट में इलेक्ट्रिकल Relay का इस्तेमाल जरूर देखा होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रिले क्या होता है, रिले क्या काम करता है और रिले कितने प्रकार का होता है। रिले की पूरी जानकारी हिंदी में पाने के लिए हमारा ये पोस्ट जरूर पढ़ें जिसमें हम इसकी सारी जानकारी देने जा रहे हैं।

रिले क्या है- (What is Relay in hindi)

What Is Relay In Hindi ? Relay In Hindi ? Difinition Of Relay In Hindi. यह एक विद्युत यन्त्र है, जिसे धारा परिणामित्र (Current Transformer) तथा विमोचन कुण्डली (Trip Coil) की सहायता से मुख्य विद्युत परिपथ तथा परिपथ वियोजक के बीच में लगाया जाता है जिससे परिपथ में प्रदोष आने पर रिले उर्जित होता है एवं रिले सर्किट ब्रेकर की सहायता से प्रदोषी यन्त्र को वैद्युत प्रणाली से पृथक (Isolate) कर देता है। इस कारण से सर्किट जलने से बच जाता है।

Relay एक electrical switch है जो पहले से निर्धारित Power Supply मिलने पर खुद ही on हो जाता है और supply कटने पर खुद ही off भी हो जाता है। जिस तरह से हम अपने घर के स्विच को ऑन करते हैं तो घर का bulb जल जाता है और जब switch को ऑफ करते हैं तो bulb फिर से बंद हो जाता है ठीक उसी तरह से एक रिले भी switch का ही काम करता है।

इन दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि घर के स्विच को हम खुद हाथ से on/off करते हैं लेकिन रिले यही काम उचित volt का supply मिलने के बाद automatic कर देता है।

प्रदोष धारा (Current) किसी भी उपकरण में यदि लम्बे समय तक प्रवाहित होती है तो वह उरा उपकरण को पूरी तरह से नष्ट कर सकती है। ऐसी विषम परिस्थितियों को दूर करने के लिए तथा किसी भी प्रकार का नुकसान रोकने के लिए शक्ति प्रणाली में रक्षण रिले प्रणाली (Protective Relay System) तथा उसके सहयोगी स्विचिंग यन्त्र (Associated Switching Device) का उपयोग किया जाता है। रक्षण रिले (Protective Relay) स्वचालित यन्त्र होते हैं जो प्रदोष (Fault) का बोध (Sense) करके उसके साथ जुड़े हुए सर्किट ब्रेकर (Circuit Breaker) को खुलने वाले निर्देश भेजते हैं तथा सर्किट ब्रेकर खुलते हैं तथा प्रदोष स्वतः दूर हो जाता है।

प्रदोष को दूर करने वाले सभी उपकरणों को स्विच गियर (Switch Gear) के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इसमें स्विच (Switch), फ्यूज (Fuse), परिपथ वियोजक (Circuit Breaker), आइसोलेटर्स (Isolators), रिले (Relay), कन्ट्रोल पेनल (Control Panel), एवं C.T. आदि आते हैं। 

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Relay का use किन-किन electrical device में किया जाता है?

Relay के इस्तेमाल automatic type के उपकरणों में किये जाते हैं। इन उपकरणों के अच्छे उदाहरण Stabilizer, UPS, Inverter इत्यादि हैं बिना रिले के इन उपकरणों का कोई महत्व ही नहीं रह जाता है। Because ये सभी ऑटोमेटिक device होते हैं और इनके किट समय-समय पर खुद ही उचित काम करने के लिए अपने connection परिपथ को बदलते रहते हैं जो कि रिले की सहायता से ही संभव हो पाता है।

यहाँ ध्यान देने वाली बात ये कि हमने कहा है कि relay लगभग हर automatic उपकरण में इस्तेमाल किया जाता है। इसका मतलब ये है कि कुछ ऐसे भी automatic device हो सकते हैं जिसमें इसका use नहीं होता है। इसका एक सबसे best example है Electric iron. इलेक्ट्रिक आयरन के automatic part में रिले का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

किसी भी जनरेटिंग स्टेशन एवं मुख्य धारा बिन्दु के मध्य बहुत से वोल्टता तथा फ्लक्स स्तर होते हैं। एक रक्षण प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिसमें विफलता (Failure) की गुंजाइश कम से कम हो।

विधुत चुंबकीय रिले (Electro Magnetic Relay)

इसे निम्न प्रकारों में विभाजित किया गया है-

(I) आकर्षित प्रकार रिले (Attracted Type Relay)

(A) आकर्षित आर्मेचर प्रारूपी संरचना (Attracted Armature Type Relay)-इस प्रकार की रिले में कुण्डली (Coil) द्वारा गतिशील विद्युत चुम्बक (Electro Magnet) होता है। कुण्डली प्रचालन क्वांटिटी (Operating Quantity) के द्वारा गतिशील होता है जो परिपथ के धारा या वोल्टता के समानुपाती (Proportional) होती है। प्रचालन क्वांटिटी (Operating Quantity) एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है जिस पर आर्भेवर निर्भर करता है। यह एक एकल गतिशील क्वांटिटी रिले (Single Actuating Quantity Relay) है. इसमें रिप्रंग के द्वारा रिस्टोरिंग (Restoring) बल उत्पन्न होता है।

प्रचालन क्वांटिटी, चुम्बकीय प्रवाह (Magnetic Flux) उत्पन्न करती है जो बाद में विद्युत चुम्बकीय बल (Electro Magnetic Force) उत्पन्न करती है। यह बल वायु अन्तर प्रवाह (Air Gap Flux) के क्रम एवं धारा के क्रम के समानुपाती होता है। ये रिले AC एवं DC दोनों के लिए कार्य करता है। DC Relays में विद्युत चुम्बकीय बल का आकर्षण चर (Constant) होता है जबकि AC Relays में Sinusoidal धारा कुण्डली में प्रवाह होता है।

रिले के अनुप्रयोग (Applications Of Relay In Hindi)

इन Relay का प्रयोग ओवर करन्ट, अन्डर करन्ट, ओवर करन्ट, ओवर वोल्टेज, अन्डर वोल्टेज रिले की ए.सी. व डी.सी. दोनों में प्रयोग लाया जाता है। इन रिलों को विभेदी रक्षण में प्रयोग लाया जा सकता है। इनका ओवर करन्ट सुरक्षा में टाइम लेग के साथ प्रयोग किया जा सकता है।

(B) सन्तुलन धरन प्रारूपी (Balance Beam Type)-इस प्रकार के Relay में क्षैतिज बीम (Horizontal Beam) होती है जो मध्य में लगी होती है। एक आर्मेचर किसी भी एक तरफ होता है, इसमें एक-एक कुण्डली (Coil) प्रत्येक तरफ में होती है। जब तक प्रचालन बलाघूर्ण (Operating Force), अवरोध बलाघूर्ण (Restraining Force) से अधिक नहीं हो जाता तब तक बीम (Beam) क्षैतिज (Horizontal)अवस्था में ही रहती है। एक कुण्डली (Coil) की धारा प्रचालन बलाघूर्ण उत्पन्न करती है, तथा दूसरी कुण्डली अवरोध बलाघूर्ण उत्पन्न करती है। जब प्रचालन बलाघूर्ण बढ़ने लगता है तो बीम झुकने लगती है और सम्पर्क बन्द हो जाते हैं।

Relay में कितने parts लगे होते हैं और उनके काम क्या हैं?

यदि Relay की designing को छोड़कर सिर्फ उसके workable parts की बात करें तो किसी भी तरह के रिले में सिर्फ 3 ही पार्ट्स होते हैं। नीचे उनके बारे में विस्तारपूर्वक बताया जा रहा है।

1) Coil

किसी भी relay का value वास्तव में सिर्फ उसके क्वाइल से ही होता है और सारा काम सिर्फ coil ही करता है। relay में coil अन्दर में लगा होता है जिस वजह से ये दिखाई नहीं देता है। इस coil से 2 connection pin निकला होता है जिसमें supply दिया जाता है। जैसे ही coil में supply दिया जाता है तो वहां magnetic field बन जाता है जिस वजह से रिले का दोलन अपने जगह से हिल जाता है और रिले off/on हो जाता है।

2) कोर

Relay का coil, जरूरत के अनुसार design किये गए लोहे के ठोस कोर पर लपेटा जाता है। ये कोर ही रिले के coil को जलने से बचाता है और एक मजबूत चुम्बकीय क्षेत्र बनाने में सहयोग देता है। जब रिले को उचित सप्लाई दिया जाता है तब वहां magnetic shield बन जाता है जो दोलन को अपने और खींच लेता है जिससे ये रिले on हो जाता है।

3) दोलन

रिले को on और off करने के लिए उसके अन्दर एक दोलन लगाया जाता है जो electric shield बनने के बाद अपने जगह से हिल जाता है जिससे relay के switch वाले pin आपस में connect या disconnect हो जाते हैं।

रिले के लाभ (Advantages Of Relay In Hindi)

  1. यह तेज एवं तीव्र गति से कार्य करते हैं। 
  2. अवरोध बल एवं प्रचालन बल का अधिक अनुपात प्राप्त कर सकते हैं।
  3. PMMC कुण्डली के कारण शुद्धता रहती है। 

रिले के हानि (Disadvantage Of Relay In Hindi)

  1. इसे धारा की बड़ी श्रेणी में बनाना बहुत कठिन है|

रिले के अनुप्रयोग (Application Of Relay In Hindi)

इनका उपयोग प्रतिबाधा रिले में किया जाता है। इनका प्रयोग ट्रांसमिशन लाइनों व प्रदायकों के रक्षण में किया जाता है।

Relay कितने group में काम करता है?

रिले निम्नलिखित 2 group में work करता है।

1) Input Power Supply Group

रिले के input वाले भाग में उचित मान का supply दिया जाता है जिससे relay काम करता है। किसी भी relay के coil से जो 2 connection pin बाहर निकाला जाता है उसी में power supply दिया जाता है। इस ग्रुप में coil और कोर का नाम आता है।

2) Switch Group

जब relay में power सप्लाई दिया जाता है तो इसका दोलन हिल जाता है जिससे रिले on/off होता है। तो इस process में जितने भी componants काम करते हैं वो relay के switch वाले group में आते हैं। दोलन इसी group में आता है क्योंकि स्विच का काम यही करता है।

Relay में कितने volts का supply दिया जाता है?

हमने बताया है कि रिले उचित supply मिलने के बाद काम करता है, लेकिन ये जान लेना भी जरूरी है कि आखिर वो उचित सप्लाई real में होता कितने volts का है? चूंकि विभिन्न तरह के काम करने के लिए विभिन्न value के volts की जरूरत होती है, इसलिए किसी विशेष value के power supply का रिले न बनाकर अलग-अलग value के power supply का relay बनाया जाता है।

यदि आप अपना कोई custom project तैयार कर रहे हैं तो आप अपने जरूरत के अनुसार volts का रिले खरीद सकते हैं। लेकिन यदि किसी circuit में पहले से लगे हुए relay की बात की जाए, तो उन रिले के input power सहित बाकी के सभी details भी खुद उन्हीं पर लिखे हुए होते हैं।

यदि आपको थोडा-सा भी अनुभव हो जाये तो आप खुद ही सभी रिले की अलग-अलग पहचान कर सकते हैं। हालांकि ज्यादातर सर्किट में 12 volt के रिले का इस्तेमाल किया जाता है जो आपको उसी रिले पर साफ़ अक्षरों में लिखा हुआ मिल जायेगा।

Relay कितने प्रकार के होते हैं?

अलग-अलग सर्किट के जरूरत को ध्यान में रखते हुए रिले को अलग-अलग designing में बनाया जाता है लेकिन उनके काम में कोई परिवर्तन नहीं आता है। इसलिए हम रिले को उसके बनावट के आधार पर न बताकर उसके काम करने के आधार पर explain करेंगे। रिले निम्न आधार पर बनाये जाते हैं।

1) Passing current

किसी भी रिले के switch वाले group से maximum कितना current पास किया जा सकता है, इस आधार पर ये विभिन्न ampere में बनाया जाता है। किसी भी Relay का passing current जितना ज्यादा होगा वो relay size में उतना ज्यादा बड़ा और ज्यादा costly होगा।

मान लेते हैं कि 5 ampere और 10 ampere का 2 रिले है। तो यहाँ 5 एम्पियर वाले रिले से अधिकतम 5 एम्पीयर current को ही cross किया जा सकता है। यदि इस रिले से 5 से ज्यादा ampere का करेंट cross किया जायेगा तो relay जल जायेगा। लेकिन वहीँ 10 ampere वाले रिले से 10 ampere तक का current पास किया जा सकता है।

एक बात का ख़ास ध्यान रहे कि 5 ampere वाले रिले के जगह पर 10 ampere वाले रिले का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन 10 ampere वाले रिले के जगह पर 5 ampere के रिले का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

2) One-Way Relay

जिस तरह से आप अपने electric board में लगे स्विच को on करते हैं तो bulb जलता है और switch को off करते हैं तो bulb बुझ जाता है, ठीक उसी तरह से एक one-way रिले भी काम करता है। इस रिले में 4 connection pin होते हैं। 2 pin power के लिए होते हैं और बाकी के 2 पिन switching के काम के लिए होते हैं।

3) Two-Way Relay

मान लेते हैं कि हमारे पास एक पंखा और एक बल्ब है। हमें इसे electric तरीके से relay के द्वारा इस तरह से on/off करना है कि रिले के on रहने पर पंखा काम करे लेकिन बल्ब काम नहीं करे और off रहने पर bulb काम करे लेकिन पंखा काम नहीं करे। तो इस तरह के काम के लिए two-way relay का प्रयोग किया जायेगा।

इस relay में 5 connection pin होते हैं। 2 पिन तो power supply के लिए ही होते हैं लेकिन बाकी के 3 pin switching के लिए होते हैं जिसमें से एक pin को common रखा जाता है। नीचे के image में आप इस रिले के कार्य-विधि को समझ सकते हैं।

4) Two Poles One Way Relay

माना कि आपके पास एक ac बल्ब और एक dc बल्ब है जिस वजह से इन दोनों को एक ही connection पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और दोनों के लिए अलग-अलग supply की भी जरूरत पड़ेगी। लेकिन आप इसे रिले के माध्यम से इस तरह से switching करना चाहते हैं कि एक ही बार में दोनों बल्ब on हो और एक ही बार में दोनों off भी हो।

तो इसके लिए आपको Two Poles One Way Relay की जरूरत होगी। ये relay एक बार में अकेले ही 2 switch का काम इस तरह से कर सकता है कि दोनों switch के pin आपस में touch भी नहीं हो सकते। इस रिले में 6 pin होते हैं जिसमें 2 pin power के लिए होता है और बाकी बचे 4 पिन में से 2-2 पिन दोनों pole में switching के लिए होता है।

Second Example, माना कि आपके पास एक ac bulb है और आप इसे एक ही रिले से इस तरह से switching करना चाहते हैं कि एक ही बार में इस बल्ब के दोनों connection (गर्मी और ठंडी) को काटा जा सके, तो इस काम के लिए भी इसी relay की जरूरत पड़ेगी।

5) Two Pole Two Way Relay

यदि आप एक ही रिले से एक ही बार में Two-Way रिले और Two Poles One Way रिले दोनों तरह के काम लेना चाहते हैं तो इसके लिए आपको Two Poles Two Way Relay की जरूरत पड़ेगी। इस relay में 8 pin होते हैं जिनमें से 2 पिन power के लिए होते हैं और बाकी बचे 6 pin में से 3-3 पिन अलग-अलग pole के होते हैं। और दोनों pole में ये 3-3 पिन 2 way switching के लिए होते हैं।

Conclusion

दोस्तों आज आपने सीखा कि रिले क्या है और ये कितने प्रकार का होता है- What Is Relay In Hindi. इसके अलावा भी आपने जाना की रिले क्या है, रिले क्या काम करती है, रिले का क्या कार्य है, रिले क्या होती है यहाँ जितने भी तरह के रिले के बारे में बताया गया है वो basic है। जब आप इससे सम्बंधित repairing का काम करेंगे तो आपको अन्य तरह के रिले भी देखने को मिल सकते हैं।

लेकिन उन सभी का एक यही basic रहेगा और आप उस रिले को देखकर ही उसके बारे में अच्छे से समझ जायेंगे। उम्मीद करता हूँ आपको ये पोस्ट ज़रूरअच्छी लगी होगी। अगर ये पोस्ट आपको अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ share करे।

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